Saturday, December 20, 2014

और क्या कहु ?

उसने तो बस बम फोड़ने का बहाना बदल दिया 
क्यू उबल गए जो उसने ठिकाना बदल दिया 
वो गोलिया तुम्हारी बन्दुक भी तुम्हारे 
उसने तो बस अपना निशाना बदल दिया

Friday, December 19, 2014

पेशावर हमले के लिए दो शब्द

वो जो कल तक फूल थे काटों की तरह चुभ गए 
जल रहे थे कल तलक वो आज दिए बुझ गए 
हमको जब तक चुभ रहे थे मुस्कुराते क्यू थे तुम 
आज जब तुमको चुभा तो बौखला कर गिर गये
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Saturday, May 5, 2012

मेरा प्यार याद रखना

ये मधुर-मिलन हमारा ये बहार याद रखना 
हो तुम बिछड़ने वाले मेरा प्यार याद रखना


कभी तुमसे कोई पूछे कभी आशना थे क्या तुम
न लबों को खोल देना ये  करार याद  रखना
हो तुम बिछड़ने वाले मेरा प्यार याद रखना

तुम आओ या न आओ मुझे अब गिला नहीं है
मै करूँगा इसी दर पे    इंतजार याद रखना
हो तुम बिछड़ने वाले मेरा प्यार याद रखना

शीशे के घर में जाकर पत्थर न फेकना तुम
टूटेगा दिल हमारा हर बार याद रखना
हो तुम बिछड़ने वाले मेरा प्यार याद रखना

मंजिल पे नज़र रख कर राहों पे चलते रहना
मै कही पे फिर मिलूँगा मेरे यार याद रखना
हो तुम बिछड़ने वाले मेरा प्यार याद रखना

बिछड़ेंगे आज हम तो ख्वाबो में मिल ही लेंगे
दो दिल है हम जुदा पर एक्जां है याद रखना
हो तुम बिछड़ने वाले मेरा प्यार याद रखना

सब कुछ जो तुम भुला दो मुझे कोई गम नहीं है
यहाँ नाम मेरा लिख दो ये दिवार याद रखना
हो तुम बिछड़ने वाले मेरा प्यार याद रखना

"दीपक" तुम्हे वफ़ा में तन्हाइया मिली है
बेहतर है भूल जाना मुश्किल है याद रखना
हो तुम बिछड़ने वाले मेरा प्यार याद रखना
ये मधुर-मिलन हमारा ये बहार याद रखना 
हो तुम बिछड़ने वाले मेरा प्यार याद रखना

Saturday, December 3, 2011

एक मै था जो समय के शाप से टकरा गया


एक मै था जो समय के शाप से टकरा गया
एक वो था जो समय के ताप से घबरा गया

जो भी कल की चीख थी सन्नाटा बन कर रह गयी
हर वय्था अब अश्रु कण की धार बन कर बह गयी

अब न कोइ वेदना सम्वेद्ना बाकी रही
मै उबल कर खुद समय के घात से टकरा गया

जब भी चीखा जोर से आवाज वापस आ मीली
फ़िर लगा जैसे तिमिर मे खुद से ही टकरा गया

रात सारी ओस की चादर पसारे रह गयी
मै तिमिर भर इस धरा का ताप सहता रह गया

एक मै था जो समय के शाप से टकरा गया
एक वो था जो समय के ताप से घबरा गया


                                     :ज्ञान दीपक दुबे 

Friday, September 9, 2011

ना ही वो इश्क रहा ना ही वो प्यार रहा


ना ही वो इश्क रहा ना ही वो प्यार रहा 
ना ही अब नज़रों में वैसा एतबार रहा 
हर कोई बंद यहा अपनी भूख के जद में 
अब भला किसको यहाँ किसका इंतजार रहा 
कब तलक एक कोई सबकी राह देखेगा 
उसकी भी उम्र हुई वो भी ना जवान रहा 
हम भी एक परवाना थे शमां पे कुर्बान हुए 
फिर कहा शमां पे कुर्बां कोई परवाना हुआ
अब ना वो हम ही रहे और ना वो तुम ही रहे 
फिर  ना  कोई तुम सा या फिर हम सा दीवाना ही हुआ  

इश्क दिल की जुबां अगर होता

इश्क दिल की जुबां अगर होता 
बिन कहे वो समझ गया होता 
मैंने चाहा है  उसको आहों में 
दर्द वो ये समझ गया होता 
प्यार गर बेजुबां नहीं होता 
प्यार के टूटने का डर कभी नहीं होता 
बात नज़रों की समझता कोई 
फिर बिछड़ने का डर नहीं होता 
दिल अगर प्यार में धडकता हो 
फिर कसी जुल्म का दिल पे असर नहीं होता 
गर कभी याद आ गयी उसकी 
फिर तो उस रात का सहर कभी नहीं होता 

जिन्दगी डूब गयी दारू में

जिन्दगी डूब गयी दारू में 
दोस्ती टुट गयी दारू में 
मै चिरागों को जलाता ही रहा 
रौशनी डूब गयी दारू में 
सुन मोहब्बत  का नया राज है ये 
आशिकी डूब गयी दारू में 
आज मै फिर से हो गया तन्हा 
मेरा गम डूब गया दारू में 
वो गया छोड़ के मुझे फिर आज 
मै भी फिर मस्त हुआ दारू में 
अब नया कुछ करूँगा  फिर कैसे 
मैं तो फिर डूब गया दारू में 
आज की रात कटेगी कैसे 
नींद फिर रूठ गयी दारू से 
कल सुबह देखते है फिर यारों 
रात तो बीत गयी दारू में 

Monday, December 27, 2010

वो कोई और नहीं

वो कोई और नहीं तू  ही था ख्वाबों में मेरे 
रोज आता था तू  भूली हुई यादों में मेरे
उम्र को मेरी  दो चार घड़ी और बढ़ा देती है
जाने क्या बात है झूठे  ही वादों में तेरे 
वो जो मुमकिन नहीं मै  उसका तलबगार हू  क्यू
जिद झलकती है मुहब्बत के इरादों में मेरे
इल्लते-इश्क का मारा हू कुछ रहम तो करो
तमाम उम्र फ़ना कर दिया यादों में तेरे
यकीं नहीं है अगर जा उलट के देख जरा
मिलेंगे मेरे ही ख़त अब भी किताबों में तेरे 
वो कोई और नहीं तू  ही था ख्वाबों में मेरे 
रोज आता था तू  भूली हुई यादों में मेरे

Friday, October 15, 2010

ऐसा लोग कहते हैं

मै उसके प्यार में पागल हूँ ऐसा लोग कहते हैं 
मै उसकी आँख से घायल हूँ ऐसा लोग कहते है 
वो कहता है मेरे चर्चे उसे बदनाम कर देंगे 
मगर मै तो नहीं कहता हू ऐसा लोग कहते है

हिचकता है, झिझकता है, सिमटता है ,बिखरता है
मुझे जब देखता है वो  तो  आहें  सर्द   भरता  है
मचलता है वो जब तक दूर है तो पास आने को
मगर जब पास आता है तो शर्मा कर गुजरता है

सिकंदर हैं  बहुत दुनिया में  पर मुझसा नहीं कोई
दीवाने हैं  तेरे लाखो मगर मुझसा नहीं कोई
बहुत होंगे तुम्हारे प्यार में मरने की चाहत में
तुम्हारे प्यार से जिन्दा हू मै मुझसा नहीं कोई

जो चेहरे से नहीं छुपता उसे कैसे छुपाऊ मै
जो बस दिल ही समझता है उसे कैसे बताऊ मै
उसे जिद है की मै इजहार उससे क्यों नही करता
जो है दिल से बयां उसको लबों तक कैसे लाऊ मैं

वो चाहे फिर मुझे यारो यही है आरज़ू मेरी 
वो लौटे मेरी राहों में यही है आरज़ू मेरी 
मुझे चाहत ना तारो की, नजारो की ना फूलों की
वो बस अपना कहे मुझको यही है आरज़ू मेरी

जरा सी बात पर मुझसे बिगड़ता रूठता है वो
खुद अपने आप से लड़ कर बिखरता टूटता है वो
कभी  जब सामने आऊं तो नज़रें फेर लेता है
जरा ओझल हुआ तो बस मुझी को ढूढ़ता है वो

किया है फिर हवा ने बदमिज़ाजी बाग़ से देखो
की हर फूलों का चेहरा लाल है अब बाग़ में देखो
जला है आज परवाना ना जाने खता किसकी
मोहब्बत कर रहा था वो शमां की आग से देखो

निकलना चाहता था मै मगर फंसता रहा यारों
मै नंगे पांव जलती आग पर चलता रहा यारों
उसे अपना बनाने का जुनूं कुछ मुझपे ऐसा था
सितम करता रहा वो और मै हँसता रहा यारों

मै उसके प्यार में पागल नहीं होता तो क्या होता
मुझे पागल बनाने का कोई जरिया नया होता
किया है वक़्त ने साजिश मेरी चाहत की राहो में वरना
ना वो तन्हा हुआ होता ना मै तन्हा हुआ होता 

Tuesday, October 12, 2010

उसके होंठों पे जब मेरा नाम आ रहा था

उसके होंठों पे जब मेरा नाम आ रहा था
जाने किस कशमकश में वो घबरा रहा था
आइना सामने था हकीकत का फिर भी
वो अपनी हकीकत को झुठला रहा था
चौंकता था की जैसे छुआ हो किसी ने
पर वो खुद के ही साये से टकरा रहा था
साफ जाहिर था  रंगे-मुहब्बत नज़र से
फिर भी होंठो पे लाने से शरमा रहा था